Sunday, September 14, 2008

chalte chalte

चलते चलते
कभी कभी
वो मोड़ भी आता है
जब रस्ता मंजिल बन जाता है
राही
ख़ुद अपने से भी दूर
जीवन
बस चलना रह जाता है

बाग़ की इन
पगडंडियों का सफर अनंत
दुर्गम पथ
उजली रात
या फिर
रातों जैसा दिन हो जाता है

अब कुछ पाने की चाह नही
जीवन बहुत सुर्ख
या स्याह नही
ख़ुद को दिया
अब जग को खोना रहता है


I wrote this a while ago, and i guess it does not create anything brand new or ground breaking, but as they say - it is one thing knowing the path, it is another to walk it.

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