Tuesday, October 28, 2008

Aasmaan

I love the sky, in all its facets and shades and seasons. no matter where i am, in unknown cities, alone, cold, and lost, i can always look at the sky and find a piece of home. the sun,the clouds, the moon, the stars are friends who stay by my side, day in day out.

I started writing this poem in early 1999, and just left it there, and then i picked it up in late 2007. i did not really write a lot in this time period. just... well... i guess my muse left me :)

anyways,

here is the poem:

लाल, पीला, नीला,
सिंदूरी,
कभी कथ्थई आसमान

वो बादलों का घर
वो प्यार का मंज़र
एक खिड़की के कोने में सिमटा
खुला आसमान

धुएँ से भरा
मट्टी से सना
पिघलने को खड़ा
हो दर्द का कोई किला आसमान

सावन में घिरिआये
जेठ में पिघलाए
अब कह दूँ तो चिढ जाए
कुछ और आंखों में चुभ जाए
इक खट्टा
पीला आसमान

वो तेरी याद का आसमान
वो मेरी आस का आसमान
इक गीला
गहरा नीला आसमान

मेरे सपनों के दिए
अंधेरों में लिए
जगता है रात भर
इक चमकीला आसमान

है वही तारों की डगर
वही चन्दा के नगर
अलग
लगता है मगर
इक सजीला
मेरे देस का आसमान

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