Saturday, December 27, 2008

main nahin murali ki tano me

मैं नहीं मुरली की तानो में
वो स्वर नहीं मेरे कानो में

मैं राधा की आंखों का जलता अंगार नहीं
मैं रुक्मिणी के पावों का भी श्रृंगार नहीं

मैं मीरा के होंठों से महका कोई गान नहीं
मैं गोकुल की गलियों का भी तो पाषाण नहीं

मैं कोई नहीं
मैं कुछ भी नहीं

वो न देखे मुझको न सही
पर मुझको भी तो दिखते श्याम नहीं

क्यों कोई नहीं
क्यों कुछ भी नहीं

क्यों राधा सा मिला आधार नहीं
क्यों रुक्मिणी सा मिरा सिंगार नहीं

क्यों गीत मेरे मीरा से कम हैं
क्यों पत्थरों में ज़ियादा दम है

क्यों इस तप को लगता फल नहीं
अब आज नहीं तो चल क्यों कल नहीं

2 comments:

Anonymous said...

This is just beautiful. I am amazed at your creativity!

transient said...

Thank you Ruch. :P