मैं नहीं मुरली की तानो में
वो स्वर नहीं मेरे कानो में
मैं राधा की आंखों का जलता अंगार नहीं
मैं रुक्मिणी के पावों का भी श्रृंगार नहीं
मैं मीरा के होंठों से महका कोई गान नहीं
मैं गोकुल की गलियों का भी तो पाषाण नहीं
मैं कोई नहीं
मैं कुछ भी नहीं
वो न देखे मुझको न सही
पर मुझको भी तो दिखते श्याम नहीं
क्यों कोई नहीं
क्यों कुछ भी नहीं
क्यों राधा सा मिला आधार नहीं
क्यों रुक्मिणी सा मिरा सिंगार नहीं
क्यों गीत मेरे मीरा से कम हैं
क्यों पत्थरों में ज़ियादा दम है
क्यों इस तप को लगता फल नहीं
अब आज नहीं तो चल क्यों कल नहीं
2 comments:
This is just beautiful. I am amazed at your creativity!
Thank you Ruch. :P
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