Friday, December 19, 2008

main - part 2

मैं वो
जों कुछ बहुत चाही और कह नही पायी
मैं वो भी
जों क्यों उस दिन चाह कर भी चुप रह नही पायी?

मैं करूँ कभी ऐसी नादानी
मैं जो जांच परख कर भी मानी
मैं बस समझ पाई दुनियादारी
मैं करके लाख जतन बहुत अब हारी

मैं प्रशनों की बहती धारा के
इस ओर खड़ी उस ओर खड़ी
मैं अपनी ही आंखों के कोनो में
थामे आँसू का इक कोर खड़ी

और तो भी
मैं अपने कन्धों पर
रक्खे
इक पूरे का पूरा संसार खड़ी

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2 comments:

Anonymous said...

आप अपने परिचय में लिखती हैं कि जीवन बहुत कुछ देखना और समझना है फिर आप कैसे उबाउ गृहिणी हो सकती हैं। लगता है की चिट्ठे का शीर्षक कुछ और कहना चाहता है :-)

आप अच्छा लिखती हैं पर कुछ कम टिप्पणी हैं। लगता है कि आपका चिट्ठा हिन्दी फीड एग्रेगेटर के साथ पंजीकृत नहीं है। इनकी सूची यहां है। आप चाहें तो अपने को पंजी कृत करा लें।

कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। मेरी उम्र के लोगों को यह तंग करता है।

transient said...

jee, is sheershak ko le kar pehle bhi kuch charcha ho chuki hai, kuch theek se samjh nahi aa raha to, abhi ke liye ye hi chod diya hai. shayad bored se matlab, ghar ke kaam se bored,aur duniya bhar ke baaki sab kaamon me zarurat se zyada interested.

jahan tak hindi feed ka sawal hai, to main to ek dum khichdi bhasha likhti hoon, ab vo hindi feed vale naraz na ho jayen, ki kaahe angrezi bhi likh rahen hain beech beech me?

aur, word verification to har umr ke logon ko tang karta hai. lekin meri samjhme nahi aaya ki aapko word verification aa kyon raha hai, google ya blogger id ke saath to nahin aana chahiye....