Thursday, May 21, 2009

dard

रात ढले जब दर्द चले
रगों में बहता खून जले
सर्द बर्फीली उँगलियों से
बाहों में कोई ज़हर भरे
खींच के एक ही झटके में
वो भीतर का सब बाह्रर करे
नब्ज़ थमे और साँस डरे
जब खिड़की पर कुछ आन रुके
रात ढले जब दर्द चले
रगों में बहता खून जले ...

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