Saturday, November 15, 2008

himadri tung shrung se

I love these lines, if i am not wrong they are by shri jayshankar prasad

हिमाद्री तुंग श्रुंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा स्मुज्वला स्वतन्त्रता पुकारती
अमृत्य वीर पुत्र हो द्र्ढ प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त्र पुण्य पंथ है बढे चलो बढे चलो

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी
अराति सैन्य सिंधु में, सुबाड़वाग्नि से जलो
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो

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