Sunday, November 16, 2008

pal

पल.
पल पल गुज़रते पल
तस्वीरों में कैद
पुतलियों में बंद
एक ज़माने से वहीं ठहरे पल
इस शहर की भीड़ में
पलकों के बंद होते ही
एक पल में गुज़रते हैं
कितने बीते पल

सफ़ेद धुएँ से बादल
रुई के गोले
या धुंद की चादर
सफेदे के पडों से हो कर आतीं
तेज़ गीली हवाएं
बालों से खेलतीं
आँचल को थपथपापतीं
चेहरे पर ठेहरतीं युं
की सीधे दिल से गुज़रतीं हों निगाहँए
खुशबू
ताज़ा कटी घास की
या
ठहरे हुए पानी की बॉस सी
उस एक साँस को सदियों तक न छोड़ने की ख्वाहिश
इस शहर के धुएँ में
पलकों के बंद होते ही
एक पल में गुज़रते हैं
कितने
बीते
पल

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