Wednesday, September 24, 2008

hawa

wrote this a while ago:

यूँ चुपके से मेरा दामन छु कर
सहेली सी कोई काँधे पे झुक कर
मेरे कानों में कुछ कह गई हवा
मैंने छूना तो चाहा
कुछ तेज़ बह गई हवा

एक गीली सी खुशबू बन कर
याद बहुत पुरानी बन कर
उन आंखों की धड़कन बन कर
मेरे दिल की तड़पन बन कर
उतरी यूँ साँसों में भर कर
मुझको छु कर अपना सा कर गई हवा
मुझ में बस कर
मेरी सी बन गई हवा

क्यों
परदेस में
जानी पहचानी सी लगती हो?
क्यों मेरी पढ़ी हुई कहानी सी लगती हो?
मेरे देस से आयी हो क्या?
अम्मा का संदेस लाई हो क्या?
मेरे सवालों पर हंस दी हवा
मैंने छु ना जो चाहा
और तेज़ चल दी हवा

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